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Thursday 31 January 2013

87-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)

‘‘माँ !’’ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनोःमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। ‘माँ’ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा का को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। नौ महीने तक गर्भ में रखना, प्रसव पीड़ा झेलना, स्तनपान करवाना, रात-रात भर बच्चे के लिए जागना, खुद गीले में रहकर बच्चे को सूखे में रखना, मीठी-मीठी लोरियां सुनाना, ममता के आंचल में छुपाए रखना, तोतली जुबान में संवाद व अटखेलियां करना, पुलकित हो उठना, ऊंगली पकड़कर चलना सिखाना, प्यार से डांटना-फटकारना, रूठना-मनाना, दूध-दही-मक्खन का लाड़-लड़ाकर खिलाना-पिलाना, बच्चे के लिए अच्छे-अच्छे सपने बुनना, बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार.....ये सब ही तो हर ‘माँ’ की मूल पहचान है। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की ‘माँ’ की यही मूल पहचान है।

86-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)

रामुबा लालजी आचार्य 90 साल की हो चली हैं। लेकिन सालभर से जिंदगी शहर के एक चबूतरे पर कट रही है। आम लोगों के भरोसे। बैंक में नौकरी करने वाली बेटी प्रवीणा का घर भावनगर में ही है। बैंक आते जाते मां को
देखती भी होगी। लेकिन कोई मतलब नहीं। मां की बदतर हालत पर पूछा तो भड़क गईं, बोलीं, ‘हमारी मां हैं। हम जैसे चाहें वैसे रखेंगे।’
रामुबा का एक बेटा भी है। वह सूरत में कारोबार करता है। चबूतरे के आस-पास रहने वाले लोग बताते हैं कि बेटा हर महीने आता है। मिलने नहीं, मां के अंगूठे का निशान लेने। ताकि पेंशन का पैसा बैंक से निकाल सके। रामुबा नर्स की नौकरी करती थीं। उसी की पेंशन मिलती है।
बच्चों ने क्यों छोड़ दिया? रामुबा के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं। बस रो पड़ती हैं। फिर कहती हैं ‘मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं है। मैं भली और मेरा चबूतरा। मेरी फिक्र बगदाणा वाले बजरंगदास बापा (सौराष्ट्र के एक संत) करते हैं। मेरी फिक्र न करो। मैं पागल नहीं हूं।’ ऐसे बन रहा है नया भारत.

प्रवीण

Wednesday 30 January 2013

85-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)



क्या कचरे का डब्बा है बोलीवूड ?

फिल्मे समाज का आइना होती है समाज की सच्चाई को बयाँ करती है सही मानिए तो फिल्मो नाटको का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है लेकिन आज यह फिल्मे हमारे समाज को किस और ले जा रही है आइये पड़ताल करते है .
तीन घंटे एक अँधेरे होल में एक सक्रीन से चिपकने के बाद हर एक दर्शक उन किरदारों से जुड़ जाता है वह काफी भावनात्मक हो जाता है वह उन किरदारों को उनके रहने सहने बोलने के ढंग अपने जीवन में प्रयोग करने लगता है वही किरदार उसके जीवन पर भी असर डालने लगते है . जिस तरह से भारतीय दर्शक पुरानी फिल्मो से यह सिख लेते थे मेरे देश की धरती सोना उगले ……..और इस गीत को गुनगुनाते थे और अपने भारतीय होने पर खुद को गर्वान्वित महसूस करते थे . उसी प्रकार आज के दर्शक शीला की जवानी …….मुन्नी बदनाम हुई जैसे अभद्र गीत गुनगुनाते है और ठीक वही स्टेप्स भी सीखते है और कही न कही यह भडकाऊ दृश्य दर्शको के मन दिमाघ में भी घूमते है . जिस प्रकार पहले यह डाइलोग चलता था प्राण जाए पर वचन निभाए ठीक और यह हमारी वाणी का एक हिस्सा बन जाता था ठीक इसी प्रकार आज भारतीय दर्शको के दिमाघ में इमरान हाश्मी के हिरोइन के साथ चुम्बन दृश्य हावी होते है और कही न कही उस फिल्म के अभद्र किरदारों की जीवन शैली की छाप दर्शको की जीवन शैली पर भी पड़ती है .जहा पहले की फिल्मो से देशभक्ति का जज्बा पैदा होता था वही आज की फिल्मो से दर्शको में सेक्स के प्रति उत्सुकता पैदा होती है जिसके कारण हमारी जीवन शैली में बदलाव आ रहा है जिस तरह फिल्मो में एक हीरो दो या तीन गर्ल फरैंड रखता है वैसे ही आज का युवा भी वैसा ही करता है दो तीन लडकिया पटाना उसका धर्म बनकर रह गया है और प्रेम की परिभाषा ही बदलकर रह गयी है . जैसे आज की फिल्मो में रुपया कमाने के शोर्ट तरीके अपनाये जाते है वैसे ही आज का युवा भी पैसा तेज़ी से कमाना चाहता है जिसके कारण समाज में बलात्कार , चोरी ,डकैती , सट्टेबाजी जैसे अपराध बढ़ रहे है . आज का बोलीवूड न तो ज्ञान का महत्व समझता है और न ही विज्ञान का ,न तो पारिवारिक रिश्तो का और न ही दोस्ती का बल्कि यह एक ऐसी सेक्स ,अभद्र कोमेडी की प्रयोगशाला बनकर रह गया है जिसका उद्देश्य न तो सामाजिक मुद्दों को उठाना है और न ही समाज में फैली किसी बुराई को दिखाना और न ही समाज को सही को सही दिशा देना है यह केवल मुनाफा खोरो की दूकान बनकर रह गया है जिसे या तो सेक्स परोसकर या फिर अभद्र देल्ली बेली जैसी, मर्डर मिस्ट्री जैसी अश्लील फिल्मे दिखाकर मुनाफा कमाना है चाहे इससे देश का कितना ही नुक्सान क्यों न हो देश के भविष्य पर कितना ही मनोवैज्ञानिक मानसिक गलत प्रभाव क्यों न पड़े . अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कलर्स चैनल पर सक्रीन अव्र्ड्स का शो था उसमे शारुख खान विधा बालन से कहता है की मुझे जो चीज़ चाहिए उसका मजा रात में ही है इस तरह के असभ्य डाएलोग को सुनकर ही पता लग सकता है की बोलीवूड का स्तर कितना गिर चुका है किस तरह के लोग इसमें काम कर रहे है . जिस देश ने शाहरुख़ खान को इतना बड़ा सुपर स्टार बना दिया वही शाहरुख़ खान एक ऐसे चैनल पर ऐसे असभ्य शब्दों ,संस्कृति तोडू शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है जिसे भारत में बहुत से परिवार एक साथ बैठकर भी देख रहे हो सकते है लेकिन शःरुख्खान के असभ्य बोलो ने चैनल को टी आर पी दिलाने में कोई कसर नही छोड़ी होगी एसा माना जा सकता है इसलिए शाहरुख़ हो या कोई और एक्टर मुनाफे के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है . कूल मिलाकर कचरे का डब्बा बनकर रह गया है बोलीवूड और इसमें काम करने वाले बहुत से एक्टर और एक्टर्स उसका हिस्सा है जिनका उद्देश्य मात्र पैसा कमाना रह गया है किसी भी कीमत पर और एसा करते करते बोलीवूड भारतीय संस्कृति , भारतीय पारिवारिक ढांचे , धार्मिक भावनाओं , जातीय भावनाओं , भारत के भविष्य के साथ भारी खिलवाड़ का रहा है जाने अनजाने ही सही .

84-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)



जिस भारत मे कभी श्रवण कुमार ,श्री राम जैसे युवाओ ने जन्म लिया अचानक उस भारत को क्या हो गया आतंकवादी हत्यारे और राक्षस इस देश मे पैदा होने लग गए ...........................
तो उसका कारण है युवाओ को दुष्प्रभवित करने वाली फिंल्मे जैसे की राजा हरिशचन्द्र का नाटक

देखकर कोई महात्मा बन जाता है वैसे ही कोई सनी लीओन को देखकर समूहिक बलात्कारी बन जाता है

कोई ज्ञानी जामवंत बनके युवा की शक्ति को जागृत कर उसे महान बलवान वीर हनुमान बना देता है तो कोई महेश भट्ट जैसा "टूच्छा व्यक्ति "अच्छे भले करोड़ो युवाओ को चोर और उचक्का और यौन हिंसक बना देता है ..............................

भारत मे देश भक्ति की फिल्मे बनाई जाये तो युवा अपने देश की रक्षा के लिए आगे आएगे
पर अगर भारत मे हर फिल्म ही यौन और कामुकता को बड़ाएगी तो फिर तो देश का सवा सत्यानाश हो जाएगा हमारा किसी भी फिल्म डाइरेक्टर या निर्माता से कोई निजी बैर नहीं है लेकिन वो भारत के युवाओ को पश्चिमी अज्ञान का आदि बनाएगे तो हम उनके सबसे बड़े विरोधी है और रहेगे ................................................................
जैसा चित्र पट आज भारत मे दिखाया जा रहा है उसकी उत्पत्ति और उसके दुष्परिणाम पर एक नजर डालिये ------------------------------नेशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के अनुसार -------अमेरिका मे सन 2002 मे कुल 16,86,600,बड़े गुनाह हुए ।
जिसमे 10 लाख 36 हजार 400 गुनाह दर्ज किए गए ।

28000
हजार 797 खून ,

2
लाख 1 हजार 581 बलात्कार

6
लाख 33 हजार 543 लुटपाट ,

12
लाख 38 हजार 288 गंभीर मारकाट ,

44
लाख 63 हजार 593 साधारण मारकाट ,
इस प्रकार कुल 65 ,65 ,805 हिंसक अपराध हुए ।

वर्ष 2002 मे अमेरिका मे ------- 12 से 17 वर्ष की उम्र के लड़को ने 2 लाख 78 हजार अपराध किए

18
वर्ष से बड़ी उम्र के लड़को ने 1 लाख 81 अपराध किए ।

अज्ञात उम्र के लोगो ने 1 लाख 93 अपराध किए ।

सन 2002 मे अमेरिका मे राष्ट्रिय व्यय 1548 अरब डॉलर अर्थात 69 हजार 660 अरब रुपये के बराबर ।
सन 2001 मेकिए गए सर्वे के अनुसार अमेरिका मे 51 %शादिया तलाक मे बदल जाती है ।


16सितंबर , 1977 के न्यूयार्क टाइम्स मे छपा था था:
अमेरिकन पेनल कहती है की अमेरिका में दो करोड़ से अधिक लोगों को मानिसक चिकित्सा की आवश्यकता है |

”-आँकड़े बताते है की आज पाश्चात्य देशों में यौन सदाचार की कितनी दुर्गति हुई है ! इस दुर्गति के परिणाम स्वरूप वहाँ के निवासियों के व्यक्तिगत जीवन में रोग इतने बढ़ गये है कि भारत से 10 गुनी ज्यादा दवाइयाँ अमेरीका में खर्च होती है जबिक भारत की आबादी अमेरिका से तीन गुनी ज्यादा है | मानिसक रोग इतने बढ़े है कि हर दस अमेरिकन में से एक को मानिसक रोग होता है | दुवार्सनाएँ इतनी बढ़ी है कि हर छः सेकण्ड में एक बलात्कार होता है और हर वर्ष लगभग 20 लाख कन्याएँ विवाह के पूर्व ही गभर्वती हो जाती है | मुक्त सहचर्य (free sex) का हिमायती होने के कारण शादी के पहले वहाँ काहर व्यक्ति शारीरिक संबंध बनाने लगता है | इसी वजह से लगभग 65% शादिया तलाक में बदल जाती है |मनुष्य के लिए प्रकृति द्वारा निर्धारित किए गये संयम का उपहास करने के कारण प्रकृति ने उन लोगों को जातीय रोगों का शिकार बना रखा है | उनमें मुख्यतः एड्स (AIDS) की बीमारी दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है | वहाँ के पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बोध, कलह, असंतोष, संताप, उच्चश्रखला उड़ंदता संताप ,शत्रुता का महा भयानक वातावरण छा गया है |विश्व कि की लगभग 4% जनसंख्या अमेरिका में है | उसके उपभोग के लिए विश्व की लगभग 40% साधन-साममी (जैसे कि कार, टी वी, वातानुकूलित मकान आदि ) मौजूद है फिर भी वहाँ अपराधवृत्ति इतनी बढ़ी है की हर 10 सेकण्ड में एक सेंधमारी होती है, हर लाख व्यक्तियों में से 425 व्यक्ति कारागार में सजा भोग रहे है

अब आप खुद सोचिए कि हम किस तरह का डेवलोपमेंट चाहते है सवा सत्यानाशी या भारतीय पद्धति से किया गया स्वदेशी और सर्वोदयी विकास जिसमे न प्रकृति का हास हो न प्रकृति हमसे रुष्ट हो

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