वैलेंटाइन डे के बहाने ………
वैलेंटाईन डे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक "माल बेचू " प्रोपगंडा के सिवा कुछ नहीं.क्या भारत में इस तथाकथित "त्यौहार" के आगमन से पहले युवक-युवतियां प्रेम नहीं करते थे??
रोटी, कपडा, मकान के बाद जीवन की सबसे अनिवार्य आवश्यकता प्रेम ही है. फिर क्या प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए दिन मुक़र्रर होना चाहिए?
बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रायोजित मीडिया दुष्प्रचार क्या इसे सिर्फ युवक - युवतियों के यौनाचार के रूप में पेश नहीं करता?
टेलीविजन पर यह भौंडा माल बेचू दुष्प्रचार मासूम बच्चों से उनका बचपन छीनकर उन्हें समय से पहले यौन जिज्ञासाओं और कुचेष्टाओं की ओर नहीं धकेल रहा?
यदि इन प्रश्नों का उत्तर "हाँ" है तो यह पर्व नहीं बल्कि सामाजिक विद्रूपता फैलाने का सिर्फ एक कुत्सित प्रयास है जिससे फ़ायदा सिर्फ इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को होने वाला है जबकि इसके दुष्परिणाम पूरे देश और समाज को भुगतने पड़ेंगे.
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