वर्तमान शिक्षा के नाम पर अधिकांश बच्चों को उन्मुक्त्त वातावरण परोसा जाता है । इस कच्ची उम्र के साथ आवश्यकताएं भी बदलती है । टीवी और इण्टरनेट इनको दोनों हाथों से शरीर सुख परोसने में लगे है । भूख लगी है और भोजन भी उपलब्द है तब व्यक्ति कितना धैर्य रख सकता है ?
माँ-बाप भी बच्चों को संस्कारो का सहारा नहीं देते ।मन और आत्मा का तो धरातल ही भूल गए । सुद्ध पशुभाव रह गया । आहार -निद्रा -मैथुन और कुछ बचा ही नहीं जीवन में ।
महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों के लिये बोलीवुड सरकार से भी ज्यादा जिम्मेदार है ।
आवश्यकता है पुनः भारतीय शिक्षा की सांस्कृतिक प्रणाली की ओर लौटने की ।
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