दही जमानेवाले भी भगवान !
संत विनोबा भावे के बचपन की बात है । उनकी माँ रात को जब दही जमाती तो भगवान का नाम लेते-लेते जमाती थी । बालक विनोबा ने एक दिन पूछा : ‘‘माँ ! दही जमाने में परमेश्वर को घसीटने की क्या जरूरत है ? उनका नाम न लें तो क्या दही नहीं जमेगा ?
माँ ने कहा : ‘‘विन्या ! हम अपनी तरफ से भले ही पूरी तैयारी कर लें, पर दही तो ठीक से तभी जमेगा जब भगवान की कृपा होगी ।
विनोबाजी कहते हैं : ‘जेल में मैं सब बातों का ध्यान रखकर दही जमाता था, फिर भी कभी-कभी खट्टा हो जाता था, तब मुझे माँ की यह बात याद आती थी । कितनी ऊँची शिक्षा दी है भारत की इस माता ने अपने बालक को ! बचपन से ही वेदान्त के संस्कारों का qसचन कि दही भले अपने-आप जमता हुआ दिखता है परंतु वह जिसकी सत्ता से जमता है, उसका स्मरण कर हमें उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । हे भारत की माताओ ! आप भी अपने बच्चों में ऐसे दिव्य संस्कारों का qसचन करो तो आगे चलकर वे स्वयं का, तुम्हारा और देश का नाम अवश्य रोशन करेंगे । उनके कर्मों में भक्तिरस आयेगा तो निर्वासनिक नारायण के सुख में उनको प्रतिष्ठित कर देगा । तौल-नाप से कहीं पूजा होती है? विनोबा की माँ भगवान शिव की पूजा करती तो गिनकर एक लाख चावल के दाने शिवजी पर च‹ढाती ।
एक दिन विनोबा के पिताजी ने उन्हें कहा : ‘‘यह क्या एक-एक दाना गिनने की खटपट लगा रखी है ? तौलकर देख लो कि एक तोले में कितने दाने च‹ढते हैं । उसी हिसाब से तौलकर चावल शिवजी पर च‹ढा दो । भूल-चूक के लिए थो‹डे दाने ऊपर से डाल दो ।
माँ ने विनोबा से पूछा : ‘‘क्यों विन्या ! ऐसा करना ठीक होगा क्या ?
बालक विनोबा ने कहा : ‘‘माँ ! तू किस चक्कर में प‹ड गयी ? तौल-नाप से कहीं पूजा होती है ? इसमें तो तेरा मन लगता है । तू देखती जाती है कि हर दाना अखण्ड तो है न । हर दाने के साथ शिवजी की स्मृति भी होती है । तौलकर दाने च‹ढाने में यह बात कहाँ !
उपरोक्त प्रसंग में बालक विनोबा की उत्तम समझ का परिचय मिलता है । यह है माता के दिव्य संस्कार-qसचन के फलस्वरूप बालक की उन्नत समझ का उदाहरण ।
संत विनोबा भावे के बचपन की बात है । उनकी माँ रात को जब दही जमाती तो भगवान का नाम लेते-लेते जमाती थी । बालक विनोबा ने एक दिन पूछा : ‘‘माँ ! दही जमाने में परमेश्वर को घसीटने की क्या जरूरत है ? उनका नाम न लें तो क्या दही नहीं जमेगा ?
माँ ने कहा : ‘‘विन्या ! हम अपनी तरफ से भले ही पूरी तैयारी कर लें, पर दही तो ठीक से तभी जमेगा जब भगवान की कृपा होगी ।
विनोबाजी कहते हैं : ‘जेल में मैं सब बातों का ध्यान रखकर दही जमाता था, फिर भी कभी-कभी खट्टा हो जाता था, तब मुझे माँ की यह बात याद आती थी । कितनी ऊँची शिक्षा दी है भारत की इस माता ने अपने बालक को ! बचपन से ही वेदान्त के संस्कारों का qसचन कि दही भले अपने-आप जमता हुआ दिखता है परंतु वह जिसकी सत्ता से जमता है, उसका स्मरण कर हमें उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । हे भारत की माताओ ! आप भी अपने बच्चों में ऐसे दिव्य संस्कारों का qसचन करो तो आगे चलकर वे स्वयं का, तुम्हारा और देश का नाम अवश्य रोशन करेंगे । उनके कर्मों में भक्तिरस आयेगा तो निर्वासनिक नारायण के सुख में उनको प्रतिष्ठित कर देगा । तौल-नाप से कहीं पूजा होती है? विनोबा की माँ भगवान शिव की पूजा करती तो गिनकर एक लाख चावल के दाने शिवजी पर च‹ढाती ।
एक दिन विनोबा के पिताजी ने उन्हें कहा : ‘‘यह क्या एक-एक दाना गिनने की खटपट लगा रखी है ? तौलकर देख लो कि एक तोले में कितने दाने च‹ढते हैं । उसी हिसाब से तौलकर चावल शिवजी पर च‹ढा दो । भूल-चूक के लिए थो‹डे दाने ऊपर से डाल दो ।
माँ ने विनोबा से पूछा : ‘‘क्यों विन्या ! ऐसा करना ठीक होगा क्या ?
बालक विनोबा ने कहा : ‘‘माँ ! तू किस चक्कर में प‹ड गयी ? तौल-नाप से कहीं पूजा होती है ? इसमें तो तेरा मन लगता है । तू देखती जाती है कि हर दाना अखण्ड तो है न । हर दाने के साथ शिवजी की स्मृति भी होती है । तौलकर दाने च‹ढाने में यह बात कहाँ !
उपरोक्त प्रसंग में बालक विनोबा की उत्तम समझ का परिचय मिलता है । यह है माता के दिव्य संस्कार-qसचन के फलस्वरूप बालक की उन्नत समझ का उदाहरण ।
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