महान
देशभक्त,
क्रान्तिकारी
वीर
चन्द्रशेखर
आजाद बड़े ही
दृढ़प्रतिज्ञ
थे। हर समय
उनके गले में
यज्ञोपवीत,
जेब में गीता
और साथ में पिस्तौल
रहा करती थी।
वे
ईश्वरपरायण,
बहादुर, संयमी
और सदाचारी
थे। एक बार वे
अपने एक मित्र
के घर ठहरे
हुए थे। उनकी
नवयुवती
कन्या ने
कामजाल में
फँसाना चाहा।
आजाद ने तुरंत
डाँटकर कहाः "इस
बार तुम्हें
क्षमा करता
हूँ, भविष्य
में ऐसा हुआ
तो गोली से
उड़ा दूँगा।"
यह बात
उन्होंने
उसके पिता को
भी बता दी और
उनके यहाँ
ठहरना बंद कर
दिया।
सन् 1925 में
काकोरी कांड
की असफलता के
बाद आजाद ने
काकोरी छोड़ा
एवं ब्रिटिश
गुप्तचरों से
बचते हुए
झाँसी के पास
एक छोटे से
गाँव
ठिमरपुरा
पहुँच गये।
कोई नहीं
जानता था कि
धोती एवं जनेऊ
में सुसज्ज ये
ब्राह्मण ʹआजादʹ हैं।
गाँव के बाहर
मिट्टी की
दीवारों के
भीतर आजाद
रहने लगे। वे
दिन भर गीता
महाभारत, और
रामायण कथा के
प्रवचन से
ग्रामवासियों
का दिल जीत
लेते थे। धीरे-धीरे
लोग उन्हें ʹब्रह्मचारीʹ जी के
नाम से
सम्बोधित
करने लगे।
किंतु एक दिन
आजाद अकेले
बैठे थे कि
इतने में एक
रूप
यौवनसम्पन्न
नारी आ
पहुँची।
आश्चर्यचकित
होकर आजाद ने पूछाः
"बहन
!
क्या बात है ?
क्या किसी
शास्त्र का
शंका-समाधान
करना है ?" वह
स्त्री हँस
पड़ी और बोलीः
"समाधान....
ब्रह्मचारी
जी ! छोड़ो ये
रामायण-महाभारत
की बातें, मैं
तो आपसे कुछ
माँगने आयी
हूँ।"
जिंदगी भर
हिमालय की तरह
अडिग रहने
वाले आजाद
गम्भीरतापूर्वक
कड़क आवाज में
बोलेः "तू घर
भूली है बहन !
जा, वापस लौट
जा।"
वह बोलीः "बस,
ब्रह्मचारी
जी ! मैं आपके
सामने
स्वेच्छा से
खड़ी हूँ, मैं
दूसरा कुछ
नहीं माँगती,
केवल आपको ही
माँगती हूँ।
आजाद उठकर
दरवाजे की और
जाने लगे तो
वह स्त्री
बोलीः "मुझे
अस्वीकार
करके कहाँ
जाओगे ? मैं
चिल्लाकर
पूरे गाँव को
इकट्ठा
करूँगी और इल्जाम
लगाकर
बेइज्जती कर
दूँगी।"
आजाद को
धाक-धमकी और
बेइज्जती के
भय से अपना संयम-सत्त्व
नाश कर देना
किसी भी कीमत
पर स्वीकार न
था। वे
बहादुर, संयमी
और सदाचारी
थे। वे दौड़कर
दरवाजे के पास
पहुँचे,
दरवाजा पर
धक्का मारा
किंतु दरवाजा
बाहर से बंद
था। अब क्या
करें ? आजाद
क्षण भर
स्तब्ध रह
गये। दूसरे ही
क्षण उनके मन
में बिजली
कौंधी।
उन्होंने एक
ऊँची नजर की।
चारों तरफ 12
फुट की
दीवारें थीं।
उनका पौरूष
जाग उठा। वे
कूदकर दीवार
पर चढ़ गये और
कूदकर तेज
रफ्तार से
बाहर दौड़
गये।
यह उनके
ब्रह्मचर्य
का बल नहीं तो
और क्या था !
रूप-यौवनसम्पन्न
नारी सामने
स्वेच्छा से
आयी, फिर भी
देश के लिए
अपना सर्वस्व
न्योछावर करने
वाले ʹआजादʹ को वह
बाँध न सकी।
ऐसे-ऐसे
संयमी,
सदाचारी देशभक्तों
के पवित्र बलिदान
से भारत आजाद
हो पाया है।
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