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Wednesday, 30 January 2013

85-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)



क्या कचरे का डब्बा है बोलीवूड ?

फिल्मे समाज का आइना होती है समाज की सच्चाई को बयाँ करती है सही मानिए तो फिल्मो नाटको का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर पड़ता है लेकिन आज यह फिल्मे हमारे समाज को किस और ले जा रही है आइये पड़ताल करते है .
तीन घंटे एक अँधेरे होल में एक सक्रीन से चिपकने के बाद हर एक दर्शक उन किरदारों से जुड़ जाता है वह काफी भावनात्मक हो जाता है वह उन किरदारों को उनके रहने सहने बोलने के ढंग अपने जीवन में प्रयोग करने लगता है वही किरदार उसके जीवन पर भी असर डालने लगते है . जिस तरह से भारतीय दर्शक पुरानी फिल्मो से यह सिख लेते थे मेरे देश की धरती सोना उगले ……..और इस गीत को गुनगुनाते थे और अपने भारतीय होने पर खुद को गर्वान्वित महसूस करते थे . उसी प्रकार आज के दर्शक शीला की जवानी …….मुन्नी बदनाम हुई जैसे अभद्र गीत गुनगुनाते है और ठीक वही स्टेप्स भी सीखते है और कही न कही यह भडकाऊ दृश्य दर्शको के मन दिमाघ में भी घूमते है . जिस प्रकार पहले यह डाइलोग चलता था प्राण जाए पर वचन निभाए ठीक और यह हमारी वाणी का एक हिस्सा बन जाता था ठीक इसी प्रकार आज भारतीय दर्शको के दिमाघ में इमरान हाश्मी के हिरोइन के साथ चुम्बन दृश्य हावी होते है और कही न कही उस फिल्म के अभद्र किरदारों की जीवन शैली की छाप दर्शको की जीवन शैली पर भी पड़ती है .जहा पहले की फिल्मो से देशभक्ति का जज्बा पैदा होता था वही आज की फिल्मो से दर्शको में सेक्स के प्रति उत्सुकता पैदा होती है जिसके कारण हमारी जीवन शैली में बदलाव आ रहा है जिस तरह फिल्मो में एक हीरो दो या तीन गर्ल फरैंड रखता है वैसे ही आज का युवा भी वैसा ही करता है दो तीन लडकिया पटाना उसका धर्म बनकर रह गया है और प्रेम की परिभाषा ही बदलकर रह गयी है . जैसे आज की फिल्मो में रुपया कमाने के शोर्ट तरीके अपनाये जाते है वैसे ही आज का युवा भी पैसा तेज़ी से कमाना चाहता है जिसके कारण समाज में बलात्कार , चोरी ,डकैती , सट्टेबाजी जैसे अपराध बढ़ रहे है . आज का बोलीवूड न तो ज्ञान का महत्व समझता है और न ही विज्ञान का ,न तो पारिवारिक रिश्तो का और न ही दोस्ती का बल्कि यह एक ऐसी सेक्स ,अभद्र कोमेडी की प्रयोगशाला बनकर रह गया है जिसका उद्देश्य न तो सामाजिक मुद्दों को उठाना है और न ही समाज में फैली किसी बुराई को दिखाना और न ही समाज को सही को सही दिशा देना है यह केवल मुनाफा खोरो की दूकान बनकर रह गया है जिसे या तो सेक्स परोसकर या फिर अभद्र देल्ली बेली जैसी, मर्डर मिस्ट्री जैसी अश्लील फिल्मे दिखाकर मुनाफा कमाना है चाहे इससे देश का कितना ही नुक्सान क्यों न हो देश के भविष्य पर कितना ही मनोवैज्ञानिक मानसिक गलत प्रभाव क्यों न पड़े . अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कलर्स चैनल पर सक्रीन अव्र्ड्स का शो था उसमे शारुख खान विधा बालन से कहता है की मुझे जो चीज़ चाहिए उसका मजा रात में ही है इस तरह के असभ्य डाएलोग को सुनकर ही पता लग सकता है की बोलीवूड का स्तर कितना गिर चुका है किस तरह के लोग इसमें काम कर रहे है . जिस देश ने शाहरुख़ खान को इतना बड़ा सुपर स्टार बना दिया वही शाहरुख़ खान एक ऐसे चैनल पर ऐसे असभ्य शब्दों ,संस्कृति तोडू शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है जिसे भारत में बहुत से परिवार एक साथ बैठकर भी देख रहे हो सकते है लेकिन शःरुख्खान के असभ्य बोलो ने चैनल को टी आर पी दिलाने में कोई कसर नही छोड़ी होगी एसा माना जा सकता है इसलिए शाहरुख़ हो या कोई और एक्टर मुनाफे के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है . कूल मिलाकर कचरे का डब्बा बनकर रह गया है बोलीवूड और इसमें काम करने वाले बहुत से एक्टर और एक्टर्स उसका हिस्सा है जिनका उद्देश्य मात्र पैसा कमाना रह गया है किसी भी कीमत पर और एसा करते करते बोलीवूड भारतीय संस्कृति , भारतीय पारिवारिक ढांचे , धार्मिक भावनाओं , जातीय भावनाओं , भारत के भविष्य के साथ भारी खिलवाड़ का रहा है जाने अनजाने ही सही .

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