पश्चिमी रिवाजों का अंधानुकरण
प्राचीन काल में विज्ञान, संस्कृति और दर्शन के क्षेत्र में अपनी
पैठ बना चुके भारत को विश्वगुरू की
उपाधि से नवाजा जा चुका है. दुनियां भर के लोगों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से बहुत
कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ है.
लेकिन
अब परिस्थितियां पहले जैसी नहीं रहीं. अब तो आलम यह है कि हम स्वयं ही अपनी मौलिक परंपराओं और मान्यताओं को
दरकिनार कर, पाश्चात्य रिवाजों और उनकी जीवनशैली को अपनाते जा रहे हैं.
हालांकि किसी अन्य राष्ट्र से सीखना और
उन्हें ग्रहण कर लेना कोई बुरी बात नहीं हैं. लेकिन आधुनिकता के पथ पर चलते हुए इन रिवाजों को अपने भीतर
समाविष्ट करने की यह प्रक्रिया किस हद तक हो,
इसे
लेकर अभी तक भारतीय लोगों की समझ विकसित नहीं हो पाई है.
भारत जैसा देश जो एक लंबे समय तक पश्चिमी राष्ट्र
का उपनिवेश रहा है, उसके लिए विदेशी लोगों के आचरण और उनके तरीकों को
अपनाना कोई नई बात नहीं है. इसकी
ग्रहणशील
प्रवृत्ति के कई उदाहरण हम पहले भी देख चुके हैं.
लेकिन कपड़े पहनने के ढंग और तौर-तरीकों में
पाश्चात्य प्रभाव से शुरू हुआ यह
सिलसिला
अब भारत की संस्कृति और मौलिकता तक आ पहुंचा है. उल्लेखनीय है कि इन पाश्चात्य रीति-रिवाजों का सबसे
ज्यादा प्रभाव देश का भविष्य कही जाने वाली
युवा पीढ़ी पर पड़ा है. वह अब पूरी तरह विदेशी संस्कृति से ओत-प्रोत हो चुकी है.
नब्बे के दशक में जब भारत समेत विश्व के अधिकांश
देशों ने सर्वआयामी प्रगति और विकास को
उद्देश्य मानते हुए, वैश्वीकरण और
उदारीकरण जैसी नई आर्थिक नीतियों को अपनाया, तो भले इस कदम ने भारतीय अर्थव्यवस्था
को बहुत हद तक संभाला हो और लोगों के सामाजिक व
आर्थिक स्तर को सुधारा हो, लेकिन इस बात से कतई
इनकार नहीं किया जा सकता कि
इन्हीं नीतियों का परिणाम है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को धूमधाम से मनाने वाले
युवा, अब वैलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे जैसे दिनों को मनाना
आधुनिक समझते हैं. कुछ समय पहले तक जो दिन
युवाओं को भारत के गौरवशाली इतिहास के अवगत करा उनमें नए जोश को प्रवाहित करते थे, आज वह मात्र एक छुट्टी का दिन बनकर रह
गए हैं. वहीं दूसरी ओर
वैलेंटाइन डे जैसे दिन, जिन्हें पश्चिमी
रिवाजों के अनुरूप ग्रहण किया गया, उनका इंतजार युवाओं को साल भर रहता है.
भारतीय परंपराओं के अनुसार आज भी प्यार
को पर्दे के अंदर की चीज माना जाता है और इन बातों के खुले व सरेआम प्रदर्शन को किसी भी हाल
में उचित नही माना जाता है. लेकिन
वैलेंटाइन
डे मनाने वाले प्रेमी जोड़े इस बात को महत्व ना देते हुए हर वो कार्य करते हैं, जिसे परंपराओं पर विश्वास करने वाले लोग
कदापि सहन नहीं कर सकते. इतना ही नहीं
युवाओं के लिए प्रेम-रूपी भावनाएं भी मात्र इसी दिन तक सीमित रह गई हैं. एक जमाने पहले लोग
अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर गुजरने का
दम भरते थे, वहीं अब प्रेम संबंध
भी शारीरिक इच्छाओं की बलि चढ़ चुके
हैं.
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