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Thursday, 3 January 2013

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भारतीय संस्कृति की परम्पराओं का महत्त्व

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी परम्पराएँ चली आ रही हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्त्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। उनमें से मुख्य निम्न प्रकार हैं-
नमस्कारः दिव्य जीवन का प्रवेशद्वार
हे विद्यार्थी! नमस्कार भारतीय़ संस्कृति का अनमोल रत्न है। नमस्कार अर्थात नमन, वंदन या प्रणाम। भारतीय संस्कृति में नमस्कार का अपना एक अलग ही स्थान और महत्त्व है। जिस प्रकार पश्चिम की संस्कृति में शेकहैण्ड (हाथ मिलाना) किया जाता है, वैसे भारतीय संस्कृति में दो हाथ जोड़कर,सिर झुका कर प्रणाम करने का प्राचीन रिवाज़ है। नमस्कार के अलग-अलग भाव और अर्थ हैं।
नमस्कार एक श्रेष्ठ संस्कार है। जब तुम किसी बुजुर्ग, माता-पिता, संत-ज्ञानी-महापुरूष के समक्ष हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हो तब तुम्हारा अहंकार पिघलता है और अंतःकरण निर्मल होता है। तुम्हारा आडम्बर मिट जाता है और तुम सरल एवं सात्त्विक हो जाते हो। साथ ही साथ नमस्कार द्वारा योग मुद्रा भी हो जाती है।
तुम दोनों हाथ जोड़कर उँगलियों को ललाट पर रखते हो। आँखें अर्धोन्मिलित रहती हैं, दोनों हाथ जुड़े रहते हैं एवं हृदय पर रहते हैं। यह मुद्रा तुम्हारे विचारों पर संयम, वृत्तियों पर अंकुश एवं अभिमान पर नियन्त्रण लाती है। तुम अपने व्यक्तित्व एवं अस्तित्व को विश्वास के आश्रय पर छोड़ देते हो और विश्वास पाते भी हो। नमस्कार की मुद्रा के द्वारा एकाग्रता एवं तदाकारता का अनुभव होता है। सब द्वंद्व मिट जाते हैं।
विनयी पुरूष सभी को प्रिय होता है। वंदन तो चंदन के समान शीतल होता है। वंदन द्वारा दोनों व्यक्ति को शांति, सुख एवं संतोष प्राप्त होता है। वायु से भी पतले एवं हवा से भी हलके होने पर ही श्रेष्ठता के सम्मुख पहुँचा जा सकता है और यह अनुभव मानों, नमस्कार की मुद्रा के द्वारा सिद्ध होता है।
जब नमस्कार द्वारा अपना अहं किसी योग्य के सामने झुक जाता है, तब शरणागति एवं समर्पण-भाव भी प्रगट होता है।
सभी धर्मों में नमस्कार को स्वीकार किया गया है। खिस्ती लोग छाती पर हाथ रखकर शीश झुकाते हैं। बौद्ध भी मस्तक झुकाते हैं। जैन धर्म में भी मस्तक नवा कर वंदना की जाती है परन्तु अपने वैदिक धर्म की नमस्कार करने की यह पद्धति अति उत्तम है। दोनों हाथों को जोड़ने से एक संकुल बनता है, जिससे जीवनशक्ति एवं तेजोवलय का क्षय रोकने वाला एक चक्र बन जाता है। इस प्रकार का प्रणाम विशेष लाभकारी है जबकि एक-दूसरे से हाथ मिलाने में जीवनशक्ति का ह्रास होता है तथा एक के संक्रमित रोगी होने की दशा में दूसरे को भी उस रोग का संक्रमण हो सकता है।

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