प्रेमदिवस (वेलेन्टाइन डे) के नाम पर विनाशकारी काम-विकार का विकास हो रहा है, जो आगे चलकर चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, खोखलापन, जल्दी बुढ़ापा और मौत लाने वाला दिवस साबित होगा। अतः भारतवासी इस अंध परम्परा से सावधान हों।
माली की कहानी
एक
था माली | उसने
अपना तन, मन, धन
लगाकर कई
दिनों तक
परिश्रम करके
एक सुन्दर बगीचा
तैयार किया | उस
बगीचे में
भाँति-भाँति
के मधुर सुगंध
युक्त पुष्प
खिले | उन
पुष्पों को
चुनकर उसने
इकठ्ठा किया
और उनका बढ़िया
इत्र तैयार
किया | फिर
उसने क्या
किया समझे आप …? उस
इत्र को एक
गंदी नाली (
मोरी ) में बहा
दिया |
अरे
! इतने दिनों
के परिश्रम से
तैयार किये गये
इत्र को, जिसकी
सुगन्ध से
सारा घर महकने
वाला था, उसे
नाली में बहा
दिया ! आप
कहेंगे कि ‘वह
माली बड़ा
मूर्ख था, पागल
था …’ मगर अपने
आपमें ही
झाँककर देखें | वह
माली कहीं और
ढूँढ़ने की
जरूरत नहीं है
| हममें
से कई लोग ऐसे ही
माली हैं |
वीर्य
बचपन से लेकर
आज तक यानी 15-20
वर्षों में तैयार
होकर ओजरूप
में शरीर में
विद्यमान
रहकर तेज, बल और
स्फूर्ति
देता रहा | अभी
भी जो करीब 30
दिन के
परिश्रम की
कमाई थी, उसे
यूँ ही
सामान्य आवेग
में आकर
अविवेकपूर्वक
खर्च कर देना
कहाँ की
बुद्धिमानी
है ?
क्या
यह उस माली
जैसा ही कर्म
नहीं है ? वह
माली तो
दो-चार बार यह
भूल करने के
बाद किसी के
समझाने पर
सँभल भी गया
होगा, फिर
वही-की-वही
भूल नही
दोहराई होगी, परन्तु
आज तो कई लोग
वही भूल
दोहराते रहते
हैं | अंत में
पश्चाताप ही
हाथ लगता है |
क्षणिक
सुख के लिये
व्यक्ति
कामान्ध होकर
बड़े उत्साह से
इस मैथुनरूपी
कृत्य में
पड़ता है परन्तु
कृत्य पूरा
होते ही वह
मुर्दे जैसा
हो जाता है | होगा
ही | उसे पता ही
नहीं कि सुख
तो नहीं मिला, केवल
सुखाभास हुआ, परन्तु
उसमें उसने 30-40
दिन की अपनी
कमाई खो दी |
युवावस्था
आने तक
वीर्यसंचय
होता है वह
शरीर में ओज
के रूप में
स्थित रहता है
| वह
तो वीर्यक्षय
से नष्ट होता
ही है, अति
मैथुन से तो
हड्डियों में
से भी कुछ
सफेद अंश
निकलने लगता
है, जिससे
अत्यधिक
कमजोर होकर
लोग नपुंसक भी
बन जाते हैं | फिर
वे किसी के
सम्मुख आँख
उठाकर भी नहीं
देख पाते | उनका
जीवन नारकीय
बन जाता है |
No comments:
Post a Comment