तुम सा दूजा नहि यहाँ , तुम्हें नवायें शीश ||
कंटक सा संसार है, कहीं न टिकता पांव |
अपन पन मिलता नहीं , माँ के सिवा न ठांव ||
रहीं लहू से सींचती , काया तेरी देन |
संस्कार सारे दिए , अदभुद तेरा प्रेम ||
रातों को भी जागकर, हमें लिया है पाल |
ऋण तेरा कैसे चुके, सोंचे तेरे लाल ||
स्वारथ है कोई नहीं , ना कोई व्यापार |
माँ का अनुपम प्रेम है,. शीतल सुखद बयार ||
जननी को जो पूजता , जग पूजै है सोय |
महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय ||
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