माता-पिता से कैसा व्यवहार करें ?
माता-पिता एवं घरके सभी
बडोंको झुककर प्रणाम करना चाहिए !
माता-पिता एवं घरके सभी बडे व्यक्तियोंको झुककर
अर्थात उनके चरण छूकर प्रणाम करना चाहिए ।‘मातृदेवो भव । पितृदेवो भव ।' अर्थात् ‘माता-पिता ईश्वरके समान हैं ।' यह हमारी महान हिंदू संस्कृतिकी शिक्षा है ।
माता-पिताका महत्त्व जाननेवाली एवं
उनकी सेवा करनेवाली कुछ महान विभूतियां
१. श्रवणकुमार : श्रवणकुमारने
अपने नेत्रहीन (अंधे) माता-पिताकी बिना थके निरंतर सेवा की । वृद्ध
माता-पिताने काशीयात्रा करनेकी इच्छा व्यक्त की, तब उसने तत्काल उसे पूर्ण
करनेके लिए प्रयास किए । श्रवणकुमारने उन्हें कांवरमें (लाठीको तराजूके
समान दो टोकरियां लगाकर) बिठाया एवं वह कांवर कंधेपर रखकर
काशीयात्राके लिए
पैदल निकल पडे ।
२. प्रभु श्रीरामचंद्र : ‘अयोध्याका राज्य अपने अनुज (छोटे भाई) भरतको देकर रामको १४ वर्षके लिए वनवास जाना चाहिए' माता कैकेयीकी इस आज्ञाका उन्होंने मनःपूर्वक पालन किया तथा पिताका वचन भी निभाया ।
३. भक्त पुंडलिक : भक्त पुंडलिकद्वारा की गई माता-पिताकी सेवा एक तपस्या ही थी । इस तपस्याके कारण ही श्री विठ्ठल भगवान भी उनपर प्रसन्न हुए और उनसे मिलने आए । उस समय माता-पिताकी सेवामें थोडा भी खंड नहीं पडना चाहिए; इसलिए भक्त पुंडलिकने अपने निकट रखी एक इंट सरकाकर श्री विठ्ठल भगवानसे उसपर खडे रहनेकी विनती की ।
४. छत्रपति शिवाजी महाराज : जीजामातासे भेंट होनेपर शिवाजी महाराज सर्वप्रथम उन्हें नमस्कार करते थे । महाराज जीजामाताकी प्रत्येक बात सुनते थे तथा वैसा करते भी थे । युद्धके लिए जाते समय भी वे उन्हें नमस्कार कर उनका आशीर्वाद लेकर ही जाते थे ।
२. प्रभु श्रीरामचंद्र : ‘अयोध्याका राज्य अपने अनुज (छोटे भाई) भरतको देकर रामको १४ वर्षके लिए वनवास जाना चाहिए' माता कैकेयीकी इस आज्ञाका उन्होंने मनःपूर्वक पालन किया तथा पिताका वचन भी निभाया ।
३. भक्त पुंडलिक : भक्त पुंडलिकद्वारा की गई माता-पिताकी सेवा एक तपस्या ही थी । इस तपस्याके कारण ही श्री विठ्ठल भगवान भी उनपर प्रसन्न हुए और उनसे मिलने आए । उस समय माता-पिताकी सेवामें थोडा भी खंड नहीं पडना चाहिए; इसलिए भक्त पुंडलिकने अपने निकट रखी एक इंट सरकाकर श्री विठ्ठल भगवानसे उसपर खडे रहनेकी विनती की ।
४. छत्रपति शिवाजी महाराज : जीजामातासे भेंट होनेपर शिवाजी महाराज सर्वप्रथम उन्हें नमस्कार करते थे । महाराज जीजामाताकी प्रत्येक बात सुनते थे तथा वैसा करते भी थे । युद्धके लिए जाते समय भी वे उन्हें नमस्कार कर उनका आशीर्वाद लेकर ही जाते थे ।
माता-पिताकी सेवा मनःपूर्वक करनेका फल
‘माता-पिता एवं गुरुकी
सेवा करना, सर्वोत्तम
तपस्या है ।' ऐसा
धर्मशास्त्रमें कहा गया है
तुष्टायां
मातरि शिवे तुष्टे पितरि पार्वति । तव प्रीतिर्भवेद्देवि परबह्म प्रसीदति ।। - महानिर्वाणतन्त्र, उल्लास ८, श्लोक २६ |
अर्थ : भगवान शंकर कहते हैं, ‘‘हे पार्वती, माता-पिताको संतुष्ट करनेवाले जीवपर
आपकी कृपा
होती है । ऐसे जीवपर परब्रह्म भी प्रसन्न होते हैं ।''
माता-पिताको कभी दुःखी न करें माता-पिता बच्चोंके लिए बहुत कष्ट सहते हैं । बच्चोंका बचपन अच्छा व्यतीत हो, उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हो, इसके लिए वे प्रयासरत रहते हैं । परंतु कुछ बच्चे माता-पिताको पलटकर उत्तर देते हैं जिससे माता-पिताका मन दुखी होता है । बच्चोंद्वारा पलटकर उत्तर देकर माता-पिताको दु:खी करना, ईश्वरको दुःखी करनेके समान है । बच्चों इससे बचनेके लिए माता-पितासे प्रेमपूर्वक व्यवहार करें तथा उनके प्रति कृतज्ञ रहें ।
माता-पिताको कभी दुःखी न करें माता-पिता बच्चोंके लिए बहुत कष्ट सहते हैं । बच्चोंका बचपन अच्छा व्यतीत हो, उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हो, इसके लिए वे प्रयासरत रहते हैं । परंतु कुछ बच्चे माता-पिताको पलटकर उत्तर देते हैं जिससे माता-पिताका मन दुखी होता है । बच्चोंद्वारा पलटकर उत्तर देकर माता-पिताको दु:खी करना, ईश्वरको दुःखी करनेके समान है । बच्चों इससे बचनेके लिए माता-पितासे प्रेमपूर्वक व्यवहार करें तथा उनके प्रति कृतज्ञ रहें ।
माता-पिताकी आज्ञाका मनःपूर्वक पालन करें !
मां बच्चोंकी
रुचि-अरुचिके अनुसार खाद्यपदार्थ बनाती है तथा बच्चोंकी आवश्यकताका पूर्ण
ध्यान रखती है । साथ ही बीमारीमें दिन-रात जागकर उनका
ध्यान रखती है । यह सब करते समय वह अपनी ओर ध्यान भी नहीं देती । मांके
मनमें सदैव बच्चोंका ही विचार होता है । पिता भी बच्चोंकी सर्व आवश्यकताएं पूर्ण
करनेके लिए तथा परिवारके पालन-पोषणके लिए परिश्रम कर धन अर्जित (कमाते)
हैं । जिस वस्तुकी आवश्यकता है वह वस्तु बच्चोंको लाकर देते हैं ।
अतः बच्चोंको यह विचार करना चाहिए कि, क्या वे माता-पिताकी आज्ञाका पालन
मनःपूर्वक करते हैं ?
बच्चों, वास्तवमें देखा जाए तो, माता-पिताकी कितनी भी सेवा की जाए, उनका ऋण नहीं चुकाया जा सकता । माता-पिताके ऋणसे अल्प मात्रामें भी मुक्त होनेके लिए उनकी आज्ञाका मनःपूर्वक पालन करें तथा उनसे आदरपूर्वक बात करें ।
माता-पिताके प्रति कृत्यद्वारा भी प्रेम व्यक्त करें बच्चे माता-पितासे प्रेम करते ही हैं; परंतु वह प्रेम कृत्यद्वारा भी व्यक्त होना चाहिए । बच्चोंका प्रेम कृत्यसे व्यक्त होनेपर माता-पिताको भी आनंद होता है । उदाहरणके लिए कुछ कृत्य आगे दे रहे हैं ।
माता-पिता बाहरसे आएं, तो तत्काल जल लाकर दें माता-पिता बाहरसे घर लौटनेपर आपमें से कितने बच्चे बिना मांगे जल लाकर देते हैं ? जल मांगनेपर भी कितने बच्चे मांसे 'क्या है ? आप स्वयं ले लीजिए' ऐसा पलटकर बोलते हैं ? बच्चों, ऐसा बोलना अनुचित है । माता-पिता बाहरसे थककर आते हैं । ऐसे समय आप उन्हें जल दें, तो उन्हें अच्छा लगता है । माता-पिताकी उनके कार्यमें सहायता करें मांको चक्कीसे गेहूं पिसवाकर, हाटसे सब्जी इत्यादि लाकर दें । इसके लिए उनसे चॉकलेट इत्यादि न मांगें ।
बच्चों, वास्तवमें देखा जाए तो, माता-पिताकी कितनी भी सेवा की जाए, उनका ऋण नहीं चुकाया जा सकता । माता-पिताके ऋणसे अल्प मात्रामें भी मुक्त होनेके लिए उनकी आज्ञाका मनःपूर्वक पालन करें तथा उनसे आदरपूर्वक बात करें ।
माता-पिताके प्रति कृत्यद्वारा भी प्रेम व्यक्त करें बच्चे माता-पितासे प्रेम करते ही हैं; परंतु वह प्रेम कृत्यद्वारा भी व्यक्त होना चाहिए । बच्चोंका प्रेम कृत्यसे व्यक्त होनेपर माता-पिताको भी आनंद होता है । उदाहरणके लिए कुछ कृत्य आगे दे रहे हैं ।
माता-पिता बाहरसे आएं, तो तत्काल जल लाकर दें माता-पिता बाहरसे घर लौटनेपर आपमें से कितने बच्चे बिना मांगे जल लाकर देते हैं ? जल मांगनेपर भी कितने बच्चे मांसे 'क्या है ? आप स्वयं ले लीजिए' ऐसा पलटकर बोलते हैं ? बच्चों, ऐसा बोलना अनुचित है । माता-पिता बाहरसे थककर आते हैं । ऐसे समय आप उन्हें जल दें, तो उन्हें अच्छा लगता है । माता-पिताकी उनके कार्यमें सहायता करें मांको चक्कीसे गेहूं पिसवाकर, हाटसे सब्जी इत्यादि लाकर दें । इसके लिए उनसे चॉकलेट इत्यादि न मांगें ।
माता-पिताको कष्ट दिए बिना अपने कार्य स्वयं करें !
अ. सोती हुई मांको
बिना उठाए अपना भोजन स्वयं लेनेवाली कु. मृणाल : कु. मृणाल आठ वर्षकी थी, वह जब पाठशालासे वापस लौटती; उस समय अनेक बार मैं नींदमें
रहती थी । उस समय मुझे उठाए बिना वह स्वयं ही अपना भोजन ले लेती थी
।
- श्रीमती शुभदा दाणी (कु. मृणालकी मां), सातारा मार्ग, पुणे. (वर्ष २०११)
घरके
अन्य काम करें भोजनसे पूर्व थाली, कटोरी, जल इत्यादि सर्व तैयारी करें । भोजनके उपरांत
सर्व समेटकर
रखें । रातको सबके बिछौने बिछाएं । माता-पिताके पैर दबाएं ।
संदर्भ
: सनातन निर्मित ग्रंथ ' सुसंस्कार एवं उत्तम
व्यवहार'
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