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Wednesday 16 January 2013

54-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)

भारतभूमि ऋषि, मुनियों, अवतारों की भूमि है। यहाँ पहले लोग आपस में मिलते तो ʹराम-रामʹ कहकर एक दूसरे का अभिवादन करते थे। दो बार ही ʹरामʹ क्यों कहते थे ? दो बार राम कहने के पीछे कितना सुंदर अर्थ छुपा है कि सामने वाले व्यक्ति तथा मुझमें, दोनों में उसी राम-परमात्मा-ईश्वर की चेतना है, उसे प्रणाम हो ! ऐसी दिव्य भावना को ʹप्रेमʹ कहते हैं। निर्दोष, निष्कपट, निःस्वार्थ, निर्वासनिक स्नेह को ʹप्रेमʹ कहते हैं। इस प्रकार एक दूसरे से मिलने पर भी ईश्वर की याद ताजा हो जाती थी पर आज ऐसी पवित्र भावना तो दूर की बात है, पतन करने वाले ʹआकर्षणʹ को ही ʹप्रेमʹ माना जाने लगा है। 14 फऱवरी को ʹवेलेन्टाइन डेʹ मनाया जाता है। इस दिन पश्चिमी देशों में युवक-युवतियाँ एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्डस, चॉकलेटस और गुलाब के फूल भेंट करते हैं।
पश्चिमी देशों के वासनामय प्रेम का घृणित रूप अभी अपने देश में भी दिखने लगा है। विशेषतः कॉलेजों में लाल गुलाब में लिये कइयों को देखा जा सकता है।
इस दिन के लिए बाजार में 20 रूपये से लेकर 200 रूपये तक के तरह-तरह के ग्रीटिंग कार्डस पाये जाते हैं। विशेष प्रकार के महँगे चॉकलेट्स भी मिलते हैं। कहाँ तो परस्परं भावयन्तु।
ʹहम एक दूसरे को उन्नत करें। तन्मे मनः शिवसकंल्पमस्तु। मेरा मन सदैव शुभ विचार ही किया करे। - इस प्रकार की दिव्य भावना को जगाने वाले हमारे रक्षाबंधन, भाईदूज जैसे पर्व और कहाँ यह वासना, अभद्रता को बढ़ावा देने वाला ʹवेलेन्टाइन डेʹ !
अभी तो विज्ञान भी सिद्ध कर रहा है कि सवासनिक प्रेम में पड़े हुए व्यक्ति की बुद्धि कुंठित हो जाती है। यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन के वैज्ञानिक एड्रियांस औरटेल्स 11 देशों में विविध जातियों के लोगों पर प्रयोग करके इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि एकाग्रता और यादशक्ति से संबंधित ज्ञानतंतुओं पर प्रेम का गहरा असर होता है। अपने प्रेमी-प्रेमिका का फोटो देखने के बाद उस व्यक्ति के मस्तिष्क की संवेदना को ʹमेग्निटिक रेसोनेन्स इमेजिंगʹ (MRI) के द्वारा मापा गया। फोटो देखने पर मस्तिष्क के चार छोटे विभागों में रक्त का प्रवाह ज्यादा देखने को मिला, जिसके परिणामस्वरूप उस व्यक्ति की यादशक्ति तथा एकाग्रता घट जाती है और भय व अवसाद (डिप्रेशन) बढ़ जाता है।
ʹवेलेन्टाइन डेʹ के नाम पर भले ही युवक-युवतियाँ समझें कि वे मौज मना रहे हैं पर वे जानते ही नहीं कि अपने-आपका कितना नुक्सान कर रहे हैं। कितना वीर्य का नाश, जीवनीशक्ति का नाश कर रहे हैं।

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