मातृ-पितृ
भक्त
"माता
पिता और
गुरुजनों का
आदर करने वाला
चिरआदरणीय
हो जाता है।" पूज्य
बापू जी।
हे
विद्यार्थी !
भारतवर्ष
में माता-पिता
को पृथ्वी पर
का साक्षात
देव माना गया
है।
मातृदेवो
भव। पितृदेवो
भव।
विद्यार्थियो
!
प्राचीनकाल
में लोग क्यों
लम्बी उम्र तक
जीते थे ? आप
जानते हैं ?
क्योंकि उस
समय लोग अपने
माता-पिता को
प्रतिदिन
प्रणाम करके
उनका
आशीर्वाद
प्राप्त करते थे।
शास्त्र कहता
हैः
अभिवादनशीलस्य
नित्यं
वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि
तस्य
वर्धन्ते
आयुर्विद्या
यशो बलम्।।
(मनुस्मृतिः 2.121)
ʹजो
माता-पिता और
गुरुजनों को
प्रणाम करता
है और उनकी
सेवा करता है,
उसकी आयु,
विद्या, यश और
बल चारों
बढ़ते हैं।ʹ
विद्यार्थियो
! आपने
श्रवण कुमार
का नाम तो
सुना ही होगा।
माता-पिता की
सेवा का आदर्श
आप श्रवण
कुमार से सीखो।
अपने
माता-पिता के
इच्छानुसार
उनको कावड़
में बिठाकर वे
उन्हें
तीर्थयात्रा
करवाने निकल
पड़े। पैदल जाना,
हिंसक
जानवरों का भय
और माँगकर
खाना – इस
प्रकार की
अनेक यातनाएँ
सहन कीं लेकिन
माता-पिता की
सेवा से विमुख
नहीं हुए।
माता-पिता की
सेवा
करते-करते ही
उन्होंने
अपने प्राण त्याग
दिये।
मर्यादापुरुषोत्तम
भगवान श्रीराम
भी आदर्श
मातृ-पितृ
गुरुभक्त थे।
गोस्वामी तुलसीदास
जी ने उनके
बारे में लिखा
हैः
प्रातःकाल
उठि के
रघुनाथा।
मातु
पिता गुरु
नावहिं
माथा।।
(श्रीरामचरितमानस)
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