एक मुसलमान लुहार की कथा
एक
मुसाफिर ने
रोम देश में
एक मुसलमान
लुहार को
देखा। वह लोहे
को तपाकर, लाल
करके उसे हाथ
में पकड़कर
वस्तुएँ बना
रहा था, फिर भी
उसका हाथ जल
नहीं रहा था।
यह देखकर
मुसाफिर ने
पूछाः "भैया
! यह कैसा
चमत्कार है कि
तुम्हारा हाथ जल नहीं रहा !"
लुहारः "इस
फानी (नश्वर)
दुनिया में
मैं एक स्त्री
पर मोहित हो
गया था और उसे
पाने के लिए
सालों तक कोशिश
करता रहा
परंतु उसमें
मुझे असफलता
ही मिलती रही।
एक दिन ऐसा
हुआ कि जिस
स्त्री पर मैं
मोहित था उसके
पति पर कोई मुसीबत
आ गयी।"
उसने अपनी
पत्नी से कहाः
"मुझे
रुपयों की
अत्यधिक
आवश्यकता है।
यदि रूपयों का
बन्दोबस्त न
हो पाया तो
मुझे मौत को गले
लगाना
पड़ेगा। अतः
तुम कुछ भी
करके, तुम्हारी
पवित्रता
बेचकर भी मुझे
रुपये ला दो।" ऐसी
स्थिति में वह
स्त्री जिसको
मैं पहले से ही
चाहता था,
मेरे पास आयी।
उसे देखकर मैं
बहुत ही खुश
हो गया। सालों
के बाद मेरी
इच्छा पूर्ण
हुई। मैं उसे
एकांत में ले
गया। मैंने
उससे आने का
कारण पूछा तो
उसने सारी
हकीकत बतायी।
उसने कहाः "मेरे
पति को रूपयों
की बहुत
आवश्यकता है।
अपनी इज्जत व
शील को बेचकर
भी मैं उन्हें
रूपये देना
चाहती हूँ। आप
मेरी मदद कर सके
तो आपकी बड़ी
मेहरबानी।" तब
मैंने कहाः "थोड़े
रुपये तो
क्या, यदि तुम
हजार रुपये
माँगोगी तो भी
मैं देने को
तैयार हूँ।"
मैं
कामांध हो गया
था, मकान के
सारे खिड़की
दरवाजे बंद
किये। कहीं से
थोड़ा भी
दिखायी दे ऐसी
जगह भी बंद कर
दी, ताकि हमें
कोई देख न ले।
फिर मैं उसके
पास गया।
उसने कहाः "रुको ! आपने
सारे खिड़की
दरवाजे, छेद व
सुराख बंद
किये है,
जिससे हमें
कोई देख न सके लेकिन
मुझे विश्वास
है कि कोई
हमें अभी भी
देख रहा है।"
मैंने
पूछाः "अभी
भी कौन देख
रहा है।"
"ईश्वर
! ईश्वर
हमारे
प्रत्येक
कार्य को देख
रहे हैं। आप
उनके आगे भी
कपड़ा रख दो
ताकि आपको पाप
का प्रायश्चित
न करना पड़े।"
उसके ये
शब्द मेरे दिल
के आर-पार उतर
गये। मेरे पर
मानो हजारों
घड़े पानी ढुल
गया। मुझे कुदरत
का भय सताने
लगा। मेरी
समस्त वासना
चूर-चूर हो
गयी। मैंने
भगवान से माफी
माँगी, पाप का
प्रायश्चित
किया और अपने
इस कुकृत्य के
लिए बहुत ही
पश्चाताप
किया। मेरे
पापी दिल को
मैंने बहुत ही
कोसा।
परमेश्वर की
अनुकंपा मुझ
पर हुई।
भूतकाल में किये
हुए कुकर्मों
की माफी मिली,
इससे मेरा दिल
निर्मल हो
गया। जहाँ
देखूँ वहाँ
प्रत्येक
वस्तु में
खुदा का ही
नूर दिखने
लगा। मैंने
सारे
खिड़की-दरवाजे
खोल दिये और
रुपये लेकर उस
स्त्री के साथ
चल पड़ा। वह
स्त्री मुझे अपने
पति के पास ले
गयी। मैंने
रूपयों की
थैली उसके पास
रख दी और सारी
हकीकत
सुनायी। उस
दिन से मुझे
प्रत्येक
वस्तु में
खुदाई नूर
दिखने लगा है।
तबसे अग्नि,
वायु व जल
मेरे अधीन हो
गये हैं।
सचमुच,
भगवान शंकर ने
कहा हैः
सिद्धो
बिन्दौ
महादेवि किं न
सिद्धयति
भूतले?
'हे
पार्वती ! बिंदु
अर्थात्
वीर्यरक्षण
सिद्ध होने के
बाद इस पृथ्वी
पर ऐसी कौन सी
सिद्धि है कि
जो सिद्ध न हो
सके?'
वृद्धावस्था
तथा अनेक
छोटी-बड़ी
बीमारियाँ
ब्रह्मचर्य के
पालन से दूर
भागती हैं, सौ
साल पहले मौत
नहीं आती।
अस्सी वर्ष की
उम्र में भी
आप चालीस साल
के दिखते हो।
शरीर का
प्रत्येक
हिस्सा स्वस्थ,
सुदृढ़ व
मजबूत दिखता
है – इसमें
बिल्कुल
अतिशयोक्ति
नहीं है। आप
भीष्म पितामह
की हकीकत
पढ़ो। उनकी
उम्र 105 साल की
थी, फिर भी
महाभारत के
युद्ध में लड़
रहे थे। वीर
अर्जुन और श्रीकृष्ण
जैसी महान
विभूतियाँ भी
उनके साथ युद्ध
करने में
सकुचाती थीं।
हजारों
योद्धा उनके
बाणों का
निशाना बनकर
युद्ध में मौत
को गले लग गये
थे।
आप जानते
हो उनकी मृत्यु
कैसे हुई?
उन्होंने कहा
था कि मैं
केवल वीरों के
साथ ही युद्ध
करूँगा और
क्षत्रिय
धर्म का पालन
करूँगा।
जिनमें प्रबल
शक्ति हो वे
आकर सामना
करें परंतु
मैं स्त्री के
साथ युद्ध
नहीं करूँगा। परमेश्वर
श्रीकृष्ण ने
जानबूझकर
उनके सामने
शिखण्डी को
खड़ा कर दिया।
भीष्म पितामह
ने उसे देखकर
पीठ कर ली
क्योंकि भीष्मजी
शिखण्डी को इस
जन्म में भी
स्त्री ही
मानते थे।
अवसर मिलते ही
अर्जुन ने
बाणों की
वर्षा कर दी,
इससे पितामह
भीष्म घायल
होकर धरती पर
गिर पड़े।
आजकल ऐसे
ब्रह्मचारी
भाग्य से ही
मिलते हैं।
वर्तमान
परिस्थितियों
में भारतवर्ष
को ऐसे
ब्रह्मचारियों
की विशेष आवश्यकता
है। यह है
ब्रह्मचर्य
की महिमा ! हमें
ऐसी महान
विभूतियों के
जीवन में
शिक्षा लेनी
चाहिए।
हमारी
शारीरिक
स्थिति दया के
योग्य है।
कर्तव्य है कि
हम शीघ्र
सावधान होकर
ब्रह्मचर्य के
सिद्धान्तों
को अपना लें
और परमात्मा की
भक्ति के
द्वारा
प्रतिष्ठामय
दिव्य जीवन व्यतीत
करें।
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