माँ घर का गौरव तो पिता घर का अस्तित्त्व होते है !
माँ के पास अश्रुधारा तो पिता के पास संयम होता है !
दोनों समय का भोजन माँ बनाती है तो जीवन भर भोजन की
ब्यबस्था करने वाले पिता को हम सहज ही भूल जाते है !
कभी लगी जो ठोकर या चोट तो "ऑ माँ" ही मुह से निकलता है !
लेकिन रास्ता पार करते कोई ट्रक पास आकर ब्रेक लगाये तो
"बाप रे" यही मुँह से निकलता है !
क्योंकि छोटे छोटे संकटों के लिए माँ है पर बड़े
संकट आने पर पिता ही याद आते है
पिता एक वट वृक्ष है,
जिसकी शीतल छाओं में सम्पूर्ण परिवार सुख से रहता है!
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