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Sunday, 20 January 2013

61-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)





जननी तेरी जय है..
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वेदों में माँको अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’, ‘पृथ्वीआदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावामाँको माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’, ‘प्रसूआदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। ऋग्वेद में माँकी महिमा का यशोगान कुछ इस प्रकार से किया गया है, ‘हे उषा के समान प्राणदायिनी माँ ! हमें महान सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करो। तुम हमें नियम-परायण बनाओं। हमें यश और अद्धत ऐश्वर्य प्रदान करो।सामवेद में एक प्रेरणादायक मंत्र मिलता है, जिसका अभिप्राय है, ‘हे जिज्ञासु पुत्र! तू माता की आज्ञा का पालन कर, अपने दुराचरण से माता को कष्ट मत दे।
अपनी माता को अपने समीप रख, मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर।प्राचीन ग्रन्थों में कई औषधियों के अनुपम गुणों की तुलनामाँसे की गई है। एक प्राचीन ग्रन्थ में आंवला को शिवा’ (कल्याणकारी), ‘वयस्था’ (अवस्था को बनाए रखने वाला) और धात्री’ (माता के समान रक्षा करने वाला) कहा गया है। राजा बल्लभ निघन्टु ने भी एक जगह हरीतकी’ (हरड़) के गुणों की तुलना माँसे कुछ इस प्रकार की है:
यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी।
(अर्थात, हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है।)
श्रीमदभागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि माताओं की सेवा से मिला आशिष, सात जन्मों के कष्टों व पापांे को भी दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति तान के लिए सुरक्षा का कवच का काम करती है।इसके साथ ही श्रीमदभागवत में कहा गया है कि माँबच्चे की प्रथम गुरू होती है।रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से माँको स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं कि:
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।
(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)
महाभारत में जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से सवाल करते हैं कि भूमि से भारी कौन?’ तब युधिष्ठर जवाब देते हैं:
माता गुरूतरा भूमेः।
(अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।)
महाभारत में अनुशासन पर्व में पितामह भीष्म कहते हैं कि भूमि के समान कोई दान नहीं, माता के समान कोई गुरू नहीं, सत्य के समान कोई धर्म नहीं और दान के समान को पुण्य नहीं है।इसके साथ ही महाभारत महाकाव्य के रचियता महर्षि वेदव्यास ने माँके बारे में लिखा है कि:
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।
(अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है।) तैतरीय उपनिषद में माँके बारे में इस प्रकार उल्लेख मिलता है:
मातृ देवो भवः।
(अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।)
संतो का भी स्पष्ट मानना है कि माँके चरणों में स्वर्ग होता है।आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी कालजयी रचनासत्यार्थ प्रकाशके प्रारंभिक चरण में शतपथ ब्राहा्रणकी इस सूक्ति का उल्लेख कुछ इस प्रकार किया है:
अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।
(अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो
तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।) माँके गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है कि:
प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।
(अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।)
चाणक्य-नीतिके प्रथम अध्याय में भी माँकी महिमा का बखूबी उल्लेख मिलता है। यथा:
रजतिम ओ गुरू तिय मित्रतियाहू जान।
निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।।
(अर्थात, जिस प्रकार संसार में पाँच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पाँच प्रकार की माँ होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरू की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।)
चाणक्य नीतिमें कौटिल्य स्पष्ट रूप से कहते हैं कि, ‘माता के समान कोई देवता नहीं है। माँपरम देवी होती है।महर्षि मनु ने माँका यशोगान इस प्रकार किया है:दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्य होता है। सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हजार पिताओं से अधिक गौरवपूर्णमाँहोती है।विश्व के महान साहित्यकारों और दार्शनिकों ने माँकी महिमा का गौरवपूर्ण बखान किया है। एच.डब्लू बीचर के अनुसार, ‘जननी का हृदय शिशु की पाठशाला है।कालरिज का मानना है, ‘जननी जननी है, जीवित वस्तुओं में वह सबसे अधिक पवित्र है।इसी सन्दर्भ में विद्या तिवारी ने लिखा है, ‘माता और पिता स्वर्ग से महान् हैं।विश्व प्रसिद्ध नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार, ‘शिशु का भाग्य सदैव उसकी जननी द्वारा निर्मित होता है।महान भारतीय कवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी रचना में माँकी महिम कुछ इस तरह बयां की:
स्वर्ग से भी श्रेष्ठ जननी जन्मभूमि कही गई।
सेवनिया है सभी को वहा महा महिमामयी।।
(अर्थात, माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ कही गई हैं। इस महा महिमामयी जननी और जन्मभूमि की सेवा सभी लोगों को करनी चाहिए।)इसके अलावा श्री गुप्त ने माँकी महिमा में लिखा है:
जननी तेरे जात सभी हम,
जननी तेरी जय है।

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राजेश कश्यप

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