कुछ तो शर्म करो- (इससे पहले की धड़कने थम जाये)
हमेशा से सुनते आये है बड़े बुजुर्ग माँ बाप
उन पेड़ों
की तरह होते है जो जिन्दगी की धुप छाव, सुख दुःख मे अपने बच्चों के सर पर साया
करते है .. खड़े रहते है खुद बारिश गर्मी सर्दी को झेलते है मगर अपने साये
के तले अपने बच्चों को कुछ नहीं होने देते .. हमारे माँ-बाप हमे दुनिया के विशाल गगन में
उड़ना सिखाते है और बदले में क्या चाहते है हमारा साथ , प्यार …
मेरी बहिन को B .ed की ट्रेंनिंग के सिलसिले में एक वृद्ध आश्रम में भेजा गया साथ में मै भी गयी और कुछ और लिखने से पहले मेरा सबसे अनुरोध है की वहां हर नौजवान को जाना चाहिए ताकि एक बार उसे अहसास हो जाये की जिन्दगी की शाम ये बुजुर्ग कैसे बित्ताते है … उन्हें ओल्ड Age Home की नहीं अपने loved One Home की जरुरत है .. वहां पर एक दम्पति से मिले दोनों बुजुर्ग, उन्होंने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया और सिर्फ पढ़ाया ही नहीं उड़ना भी सिखा दिया और वह संताने उड़ गयी दुसरे देश के लिए .. वही अपना घरोंदा बना कर बैठ गयी और ये माँ -बाप अपने घोसले में अकेले रह गए .तन्हाई और दुःख ऐसी बड़ी की पत्नी ने ये दुनिया ही छोड़ दी और पति वृद्ध आश्रम आ गए ताकि अपने जैसे बूढ़े पेड़ों के साथ रह सके ! क्युकी अब उनकी जरूरत किसी को नहीं …अपनी कहानी कहते हुए वह बूढी ऑंखें डबडबा गयी और अश्क बांध तोड़ कर बह निकले ……….मेरा मन बेचैन हो उठा और मैं सोचने लगी की औलाद ये क्यों नहीं समझती की इंसान पंछी नहीं है …… वह अपने बच्चों को उड़ना तो सिखा देता है मगर उनसे दूर नहीं रह सकता .
इसी तरह एक बुजुर्ग को उनकी औलादे इसलिए यहाँ छोड़ गयी क्युकी उनकी पत्नी उस बुजुर्ग की सेवा नहीं कर सकती थी अब ये बुजुर्ग ही है जिन्हें पुराने सामान की तरह घर से निकाल दिया जाता है …….हर किसी की यही कहानी किसी का कोई नहीं और किसी का सब होते हुए भी कुछ नहीं………
मगर वृद्ध आश्रम में रहकर भी ये कहाँ सुखी है …….. जिन्दगी जी नहीं जा रही बस काटी जा रही है जैसे हर सांस गुनाह है हर धड़कन सजा है ……….. इनकी देखबाल करने के लिए कोई नहीं है – सफाई का इन्तेजाम नहीं है – अपने कपडे खुद धोने पड़ते है – और अगर बीमार पढ़ गए तो कोई तीमारदार नहीं — सब एक दुसरे के सहारे — साथ होते हुए भी एक अजीब सा खामोश सा दर्द…
एक बार अपने को उस जगह रख कर सोचो तो रूह कांप जाये … ग़ालिब की ये पंक्तियाँ शायद उनकी हालत को पूरी तरह से बयाँ करती है
रहिये अब ऐसी जगह चलाकर जहां कोई न हो
हमसुखन कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो
पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमार -दार
और अगर मर जाइए तो , नौहा -ख्वान कोई न हो
मेरी हम सब पढने वालों से प्राथना है की अपने इन बड़े पेड़ों के साये को सर से न हटाये और वो पेड़ जो प्यार की खाद और देखभाल के पानी के बिना सुख रहे है उन्हें अपना कुछ समय और प्यार दे , ताकि कुछ देर के लिए ही सही वोह मुस्कुरा सके .. और जो इन्हें भूल गए है वो कुछ शर्म करे और इस से पहले की इन बड़े पेड़ों की धड़कने थम जाये उन्हें आ कर एक बार गले लगा ले वरना कही देर बहुत देर न हो जाये ………..
मेरी बहिन को B .ed की ट्रेंनिंग के सिलसिले में एक वृद्ध आश्रम में भेजा गया साथ में मै भी गयी और कुछ और लिखने से पहले मेरा सबसे अनुरोध है की वहां हर नौजवान को जाना चाहिए ताकि एक बार उसे अहसास हो जाये की जिन्दगी की शाम ये बुजुर्ग कैसे बित्ताते है … उन्हें ओल्ड Age Home की नहीं अपने loved One Home की जरुरत है .. वहां पर एक दम्पति से मिले दोनों बुजुर्ग, उन्होंने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया और सिर्फ पढ़ाया ही नहीं उड़ना भी सिखा दिया और वह संताने उड़ गयी दुसरे देश के लिए .. वही अपना घरोंदा बना कर बैठ गयी और ये माँ -बाप अपने घोसले में अकेले रह गए .तन्हाई और दुःख ऐसी बड़ी की पत्नी ने ये दुनिया ही छोड़ दी और पति वृद्ध आश्रम आ गए ताकि अपने जैसे बूढ़े पेड़ों के साथ रह सके ! क्युकी अब उनकी जरूरत किसी को नहीं …अपनी कहानी कहते हुए वह बूढी ऑंखें डबडबा गयी और अश्क बांध तोड़ कर बह निकले ……….मेरा मन बेचैन हो उठा और मैं सोचने लगी की औलाद ये क्यों नहीं समझती की इंसान पंछी नहीं है …… वह अपने बच्चों को उड़ना तो सिखा देता है मगर उनसे दूर नहीं रह सकता .
इसी तरह एक बुजुर्ग को उनकी औलादे इसलिए यहाँ छोड़ गयी क्युकी उनकी पत्नी उस बुजुर्ग की सेवा नहीं कर सकती थी अब ये बुजुर्ग ही है जिन्हें पुराने सामान की तरह घर से निकाल दिया जाता है …….हर किसी की यही कहानी किसी का कोई नहीं और किसी का सब होते हुए भी कुछ नहीं………
मगर वृद्ध आश्रम में रहकर भी ये कहाँ सुखी है …….. जिन्दगी जी नहीं जा रही बस काटी जा रही है जैसे हर सांस गुनाह है हर धड़कन सजा है ……….. इनकी देखबाल करने के लिए कोई नहीं है – सफाई का इन्तेजाम नहीं है – अपने कपडे खुद धोने पड़ते है – और अगर बीमार पढ़ गए तो कोई तीमारदार नहीं — सब एक दुसरे के सहारे — साथ होते हुए भी एक अजीब सा खामोश सा दर्द…
एक बार अपने को उस जगह रख कर सोचो तो रूह कांप जाये … ग़ालिब की ये पंक्तियाँ शायद उनकी हालत को पूरी तरह से बयाँ करती है
रहिये अब ऐसी जगह चलाकर जहां कोई न हो
हमसुखन कोई न हो और हमज़बाँ कोई न हो
पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमार -दार
और अगर मर जाइए तो , नौहा -ख्वान कोई न हो
मेरी हम सब पढने वालों से प्राथना है की अपने इन बड़े पेड़ों के साये को सर से न हटाये और वो पेड़ जो प्यार की खाद और देखभाल के पानी के बिना सुख रहे है उन्हें अपना कुछ समय और प्यार दे , ताकि कुछ देर के लिए ही सही वोह मुस्कुरा सके .. और जो इन्हें भूल गए है वो कुछ शर्म करे और इस से पहले की इन बड़े पेड़ों की धड़कने थम जाये उन्हें आ कर एक बार गले लगा ले वरना कही देर बहुत देर न हो जाये ………..
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