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Monday, 21 January 2013

64-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY( Divine Valentine Celebration)



भीख माँगते...हमारे वृद्ध मातापिता

भीख माँगते...हमारे वृद्ध मातापिता ....मित्रों एवं पाठकगणों से मेरा अनुरोध है  कि कृपया इस आलेख को अवश्य पढ़े एवं अपने सभी मित्र-भाईयों को पढ़ाये जाने का प्रयास अवश्य करें । अवकाश का दिन होने के कारण मैं सुबह अपने घर पर न्यूज पेपर का अवलोकन कर रहा था कि अचानक मेरे घर के दरवाजे की कुण्डी बजी,कौन हो सकता है...सोचते हुए जब दरवाज़ा खोला तो देखा कि एक  वृद्ध महिला खुले उबड़खाबड़ सफेद बाल, मलिन धोतीब्लाउज पहने खड़ी थी, चेहरे की सलवटें व कमर का झुकाव उनकी वृद्धावस्था के कष्ट को दर्शा रहा था, इतने में ही मेरी पत्नी व छोटा बेटा भी मेरे पास आ गये । मैं कुछ कहता उससे पहले ही वह वृद्धा दरवाजे पर बनी सीड़ियों पर बैठ गयींमैंने हल्के से स्वर में पूछा:
'' कहिये, आपको क्या चाहिये ?
उसने कोई उत्तर न देकर मेरी ओर देखा, कुछ ही पलों में उसकी आँखों में से अश्रुधारा बह निकली । मैंने फिर पूछा:
'' कहिये, आपको क्या चाहिये ?
'''बेटा ! मुझे भूख लगी है , कुछ खाने को मिल जाता (रून्धे गले से निकले यह शब्द उसकी वेदना का अहसास मुझे करा गये,मैंने पत्नी की ओर देखा ,मेरे मनोभाव समझते हुए वह शीघ्र रसोई की ओर चली गयी और कुछ ही समय में गिलास में दूध/बिस्कुट लेकर आ गयीं जो उस वृद्धा को सौंप दिया | मैंने देखा कि उस आहार को लेते वक्त भी वृद्धा की आँखों से आँसू निकल ही रहे थे । पत्नी ने कहा..थोड़ी देर लगेगी आप खाना खाकर ही जाना, उसने हाँ में सिर हिला दिया । थोड़ी देर भी नहीं हुई एक 12—13 साल का लड़का उस वृद्धा के पास आकर बोला ...अम्मा घर चल.... मैं तुझे कितनी देर से ढूँढ रहा हूँ, उसके नहीं उठने पर, वह उसे खींचने सा लगा.. मैंने पूछा..यह तुम्हारी कौन है? दादी हैं यह...कहकर फिर खींचने लगा, फिर वह वृद्धा भी मन न होकर भी धीरेधीरे उसके साथ मजबूर होकर चलने लगी... पत्नी को थोड़ा दुख हुआ कि एक इंसान आशा से भोजन के लिये आया परन्तु वह बिना पेट भरे ही चला गया । मैं सोच ही रहा था कि यह कौन हैं ....कहाँ  रहती हैं ? तभी बेटे ने कहा ..पापाजी ! इस लड़के को मैंने देखा है यह तीन गली छोड़कर चौथी गली के आखिरी वाले मकान में रहता है, यह सुनते ही अनेकों प्रश्न मेरे मस्तिष्क को विचलित करने लगे । इस प्रतिकूल सत्यदृश्य को देखने के बाद मन बारबार उस वृद्धा के पास ही पहुँचने लगा | नहाने से लेकर ईश्वर ध्यानतक उस वृद्धा की तस्वीर बार-बार सम्मुख आने लगी, मन नहीं माना, तो मैं अपनी मन:शान्ति हेतु, अनेकों प्रश्नों के उत्तर की जिज्ञासा को लिये, चौथी गली के आखिरी मकान पर पहुँच ही गया । घर के बाहर दो सज्जन (उम्र 35 से 45 वर्ष के मध्य) कुर्सी पर बैठे अपनी बातों में मशगूल थे । मेरे नमस्ते कहते ही, उनकी वार्ता का क्रम टूट गया | अभिनन्दन स्वीकार करते हुए उनमें से एक सज्जन बोले:
...कहिये ..आपको किनसे मिलना है ?
..इस घर के मालिक से मिलना है ।
...यह हमारा ही घर है कहिये..? यह हमारे बड़े भाई साहब है मुझसे एक छोटे और भाई हैं हम तीनों भाइयों का परिवार इसी घर में रहता है हम तीन भाई ही इस घर के मालिक हैं । (तभी तीसरे भाई भी वहाँ आ गये)
...और आपके मातापिता ?
..पिताजी का दो साल पहले स्वर्गवास हो चुका है । माता जी अभी है ।
...आप बहुत ही भाग्यशाली हैं कि आपके ऊपर कम से कम अपनी माता जी साया तो है ।
...हाँ ! यह तो है ।
...कृपया उनकी देखभाल अच्छी प्रकार से करते रहियेगा ।
...करते तो हैं ?
..क्षमा करें । आप और आपका परिवार तो सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं, परन्तु घर का असली मुखिया अपने घर में ही दुखी है । तन ढकने को साफ कपड़े, खाने को भोजन, जब घर में नहीं मिलेगा तो मजबूर होकर दूसरे घरों से .....।(मेरी बात पूरी नहीं हो पायी थी)
...अरे भाई साहब ! हमारी माँ का दिमाग सटक गया है (थोड़ा क्रोध में) वह जब चाहें घर से बाहर जाकर माँगने लगती हैं । पहले भी यह घर से चली गयीं थी । बड़ी मुश्किल से 15 दिन बाद बरेली रेलवे स्टेशन पर मिलीं, तबसे और भी इन पर पहरा रखना पड़ता है ।
...फिर भी, कृपया अपने घर के बुजुर्ग का और ज्यादा ध्यान रखें । (इतना कहकर मैंने अपनी बात को विराम देते हुए नमस्ते कर ली)
आइये कृपया विचार करें...हमारे शरीर के जन्मदाता हमारे मातापिता हैं.... उन्होंने किनकिन कठिनाईयों/परिस्थितियों का सामना करते हुए हमारा पालनपोषण किया,उनके अच्छे पालनपोषण से ही हम बड़े और योग्य बनें हैं.. हर मातापिता की यह अपेक्षा रहती है कि जब वह वृद्ध होंगे और शरीर धीरेधीरे कमजोर होता जायेगा,तब यह संतान मेरा सहारा बनेगी...यही उनकी  अपेक्षा...उन पर ध्यान नहीं देने से, जब उपेक्षा में बदल जाती है, तब ऐसे वृद्ध मातापिता अपने परिवार से अपने को अलगथलग सा महसूस करने लगते हैं ....दरअसल बेटियों की शादी हो जाने पर वह अपनेअपने घर चली जाती हैं और बेटों की जब तक शादी नहीं होती तब तक .... तो वह बेटे ही होते हैं  परन्तु शादी हो जाने के बाद सब अपनेअपने परिवारों में खो जाते हैं और अपनेअपने कार्यों की व्यस्तता का प्रदर्शन करते रहते हैं | एक ऐसी स्थिति और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब संताने/पुत्र वधू उनसे बातचीत भी बहुत कम करने लगती हैं, उनके खाने पीने और कपड़े बदलने आदि कार्य को भार स्वरूप महसूस कर, टालमटोल कर अनदेखा करने लगती हैं, तब वह मानसिक रूप से अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं, उन्हें फिर वह अपना घर... अपना नहीं लगता । वह घर के मुखिया होते हुए भी स्वयं को पराया महसूस करने लगते हैं भूख, प्रेम और वार्तालाप की चाहत उन्हें मौहल्ले के दूसरे घरों में तलाश .....करने को विवश कर देती  हैं....यही स्थिति उनको घर से बाहर निकलने का कारण बन जाती है । जब अपने ही मातापिता भीख माँगने को मजबूर हो जायें...धिक्कार है ....ऐसे हमारे पुत्र जीवन को ......यह काफी दुखद स्थिति है ।
जिस परिवार में वृद्ध मातापिता है,वह परिवार सौभाग्यशाली है । उन्हें समय से भोजन कराना,भोजन बनाते समय उनकी इच्छा का जानना, नहलाना, उनके कपड़ों को बदलना, समयानुकूल वस्त्रों को धारण कराया जाना,और उनसे प्रतिदिन वार्तालाप करना, उनके अनुभवों को सुनना....... बेहद जरूरी है । वृद्ध मातापिता के आशीर्वाद रामबाण के समान हैं । समझों... घर में ईश्वर विद्यमान है । यदि हमें अपने ईश्वर से प्रेम है तो सर्वप्रथम अपने मातापिता की प्रेम से सेवा करें | इनकी ऐप्लीकेशन को ईश्वर तुरन्त रिकमन्डेशन (स्वीकृत) करते हैं.... रिकमन्डेशन होते ही एक्शन/कार्यवाही शुरू हो जाती है । इन्होंने पहले हमें प्यारदुलार दिया, अब हम सभी का दायित्व है कि इन्हें हम पूजें, प्यार करें, दुलार करें ,इनका ध्यान रखें । हमारे बच्चे हमसे ही सीखते हैं, हम अपने घर के वृद्ध मातापिता से जैसा बर्ताव करेंगे । उसी प्रकार हमारे बच्चे भी... हमारे वृद्ध होने पर वैसा ही बर्ताव करेंगे । आइये.....हम सब अपने मातापिता को प्रसन्न करते रहें...वह खुश तो हम भी खुश । कृपया...अभिव्यक्ति में कोई त्रुटि हो गयी हो तो उसके लिये क्षमा करें ।
-त्रिभुवन किशोर

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