पश्चिमवाद की खतरनाक अवधारणा
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आधुनिकता की चाह में भारतीय जनमानस अपनी वास्तविकता और अपने ध्येय को भूलता जा रहा है। भारतीय पसोपेश में हैं कि वह पश्चिमी सभ्यता को अपनाएं या भारतीय सभ्यता को। पश्चिमी सभ्यता की ओर अंधी दौड़ के कारण मानवीय मूल्यों और नवीनताओं का लगातार क्षरण हुआ है। यह सच है कि पश्चिमी जगत ने विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है, किंतु नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों के लिए पश्विमी देश भारत की ओर ही निहारते रहे हैं। ऐसे में हमें पश्चिमी देशों की विज्ञानसम्मत बातों को स्वीकरते हुए, अपनी नैतिकता और पारिवारिक मूल्यों का भी ध्यान रखना चाहिए। वक्त की जरूरत है कि हम आधुनिकता का अंधानुकरण न करते हुए नैतिकता और सभ्यता का भी ख्याल रखें।
इस पश्चिमवाद की खतरनाक अवधारणा का पुनर्पाठ, पुन: अर्थनिर्धारण आज जरूरी हो गया है। क्योंकि यह अवधारणा भारतीय समाज, संस्कृति, धर्म, दर्शन और साहित्य सभी की जड़ों में मट्ठा डालने का काम कर रही है। योगी अरविंद पश्चिमी आधुनिकता से भयभीत थे और मानते थे कि आधुनिकता धर्मनिरपेक्षतावाद तथा पश्चिम की व्यक्तिवादी विचारधाराएं भारतीय समाज को नष्ट कर देंगी।
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