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Sunday 13 January 2013

47-PARENTS WORSHIP DAY : 14TH FEBRUARY

एक पिता अपने छोटे से पुत्र को गोद में लिये बैठा था। एक कौआ सामने छज्जे पर बैठ गया। पुत्र ने पूछाः "पापा ! यह क्या है ?" पिताः "कौआ है।"
पुत्र ने फिर पूछाः "यह क्या है ?" पिता ने कहाः "कौआ है।"
पुत्र बार-बार पूछताः "पापा ! यह क्या है ?"
पिता स्नेह से बार-बार कहताः "बेटा ! कौआ है कौआ।"
कई वर्षों के बाद पिता बूढ़ा हो गया। एक दिन पिता चटाई पर बैठा था। घर में कोई उसके पुत्र से मिलने आया। पिता ने पूछाः "कौन आया है ?"
पुत्र ने नाम बता दिया। थोड़ी देर में कोई और आया तो पिता ने फिर पूछा। पुत्र ने झल्ला कर कहाः "आप चुपचाप पड़े क्यों नहीं रहते ! आपको कुछ करना-धरना तो है नहीं, ʹकौन आया, कौन गयाʹ दिन भर यह टाँय-टाँय क्यों लगाये रहते हैं ?"
पिता ने लम्बी साँस खींची, हाथ से सिर पकड़ा। बड़े दुःख भरे स्वर में धीरे-धीरे कहने लगाः "मेरे एक बार पूछने पर तुम जितना क्रोध करते हो और तुम दसों बार एक ही बात पूछते थे कि यह क्या है ? मैंने कभी तुम्हें झिड़का नहीं। मैं बार-बार तुम्हें बताताः बेटा ! कौआ है।"
भूलकर भी कभी अपने माता-पिता का ऐसे तिरस्कार नहीं करना चाहिए। वे तुम्हारे लिए आदरणीय हैं। उनका मान-सम्मान करना तुम्हारा कर्तव्य है। माता पिता ने तुम्हारे पालन-पोषण में कितने कष्ट सहे हैं ! कितनी रातें माँ ने तुम्हारे लिए गीले में सोकर गुजारी हैं, और भी तुम्हारे जन्म से लेकर अब तक कितने कष्ट तुम्हारे लिए सहन किये हैं, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। कितने-कितने कष्ट सहकर तुमको बड़ा किया और अब तुमको वृद्ध माता-पिता को प्यार से दो शब्द कहने में कठिनाई लगती है ! पिता को ʹपिताʹ कहने में भी शर्म आती है !
अभी कुछ वर्ष पहले की बात हैः इलाहाबाद में रहकर एक किसान का बेटा वकालत की पढ़ाई कर रहा था। बेटे को शुद्ध घी, चीज वस्तु मिले, बेटा स्वस्थ रहे इसलिए पिता घी, गुड़, दाल-चावल आदि सीधा-सामान घर से दे जाते थे।
एक बार बेटा अपने दोस्तों के साथ चाय-ब्रेड का नाश्ता कर रहा था। इतने वह किसान पहुँचा। धोती फटी हुई, चमड़े के जूते, हाथ में डंडा, कमर झुकी हुई... आकर उसने गठरी उतारी। बेटे को हुआ, ʹबूढा आ गया है, कहीं मेरी इज्जत न चली जाय !ʹ इतने में उसके मित्रों ने पूछाः "यह बूढ़ा कौन है ?"
लड़काः "He is my servant."  (यह तो मेरा नौकर है।)
लड़के ने धीरे से कहा किंतु पिता ने सुन लिया।
वृद्ध किसान ने कहाः "भाई ! मैं नौकर तो जरूर हूँ लेकिन इसका नौकर नहीं हूँ, इसकी माँ का नौकर हूँ। इसीलिए यह सामान उठाकर लाया हूँ।"
यह अंग्रेजी पढ़ाई का फल है कि अपने पिता को मित्रों के सामने ʹपिताʹ कहने में शर्म आ रही है, संकोच हो रहा है ! ऐसी अंग्रेजी पढ़ाई और आडम्बर की ऐसी की तैसी कर दो, जो तुम्हें तुम्हारी संस्कृति से दूर ले जाय ! पिता तो आखिर पिता ही होता है चाहे किसी भी हालत में हो। प्रह्लाद को कष्ट देने वाले दैत्य हिरण्यकशिपु को भी प्रह्लाद कहता हैः ʹपिताश्री !ʹ और तुम्हारे लिए तनतोड़ मेहनत करके तुम्हारा पालन-पोषण करने वाले पिता को नौकर बताने में तुम्हें शर्म नहीं आती !
माता-पिता व गुरुजनों की सेवा करने वाला और उनका आदर करने वाला स्वयं चिरआदरणीय बन जाता है। जो बच्चे अपने माता पिता का आदर-सम्मान नहीं करते, वे जीवन में अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते।




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