बालक श्रीराम
हमारे
देश में भगवान
श्री राम के
हजारों मंदिर
हैं। उन भगवान
श्री राम का
बाल्यकाल
कैसा था, यह
जानते हो?
बालक
श्री राम के
पिता का नाम
राजा दशरथ तथा
माता का नाम
कौशल्या था।
राम जी के
भाइयों के नाम
लक्ष्मण, भरत
और शत्रुघ्न
था। बालक
श्रीराम बचपन
से ही शांत,
धीर, गंभीर
स्वभाव के और
तेजस्वी थे।
वे हर-रोज़
माता-पिता को
प्रणाम करते
थे। माता-पिता
की आज्ञा का
उल्लंघन कभी
भी नहीं करते
थे। बचपन से
ही गुरू
वशिष्ठ के
आश्रम में
सेवा करते थे।
श्रीराम तथा
लक्ष्मण गुरू
जी के पास
आत्मज्ञान का
सत्संग सुनते
थे। गुरूजी की
आज्ञा का पालन
करके नियमित
त्रिकाल
संध्या करते
थे। संध्या
में प्राणायाम,
जप-ध्यान आदि
नियमित रीति
से करते थे। गुरू
जी की आज्ञा
में रहने से,
उनकी सेवा
करने से श्री
वशिष्ठजी खूब
प्रसन्न रहते
थे। इसलिए गुरू
जी ने
आत्मज्ञान,
ब्रह्मज्ञानरूपी
सत्संग अमृत
का पान उन्हें
कराया था।
गुरू वशिष्ठ
और बालक
श्रीराम का जो
संवाद-सत्संग
हुआ था, वह आज
भी विश्व में
महान ग्रंथ की
तरह पूजनीय
माना जाता है।
उस महान ग्रंथ
का नाम है,
श्री योगवाशिष्ठ
महारामायण।
बचपन से
ही
ब्रह्मज्ञानरूपी
सत्संग का
अमृतपान करने
के कारण बालक
श्रीराम
निर्भय रहते थे।
इसी कारण महर्षि
विश्वामित्र
श्रीराम तथा
लक्ष्मण को छोटी
उम्र होने पर
भी अपने साथ
ले गये। ये
दोनों वीर
बालक
ऋषि-मुनियों
के परेशान
करने वाले बड़े-बड़े
राक्षसों का
वध करके
ऋषियों-मुनियों
की रक्षा
करते। श्री
राम
आज्ञापालन
में पक्के थे।
एक बार
पिताश्री की
आज्ञा मिलते
ही आज्ञानुसार
राजगद्दी
छोड़कर 14 वर्ष
वनवास में रहे
थे। इसीलिए तो
कहा जाता है। रघुकुल
रीत सदा चली
आई। प्राण जाई
पर वचन न जाई।
श्री राम
भगवान की तरह
पूजे जा रहे
हैं क्योंकि
उनमें
बाल्यकाल में
ऐसे सदगुण थे
और गुरू जी की
कृपा उनके साथ
थी।
No comments:
Post a Comment