सेवा धर्म
सेवा मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है जो अन्य प्राणियों से
श्रेष्ठतम बनाता है। सेवा मानवता की अद्भुत जीवन रेखा है। सेवाधर्म परम गहन
होने से योगियों के लिए अगम है विवेक, बुद्धि, काल और समय का विचार करके
सेवाधर्म का निर्वहन होता है। सेवा के समान कोई तप और यज्ञ नहीं है। हनुमान
सेवा और आत्मसमर्पण के प्रतीक हैं। तुलसी कहते हैं कि 'आगम निगम प्रसिद्ध
पुराना। सेवाधरमु कठिन जगु जाना।' भारतीय चिंतन में सेवा जीवन शैली का एक
विशिष्ट अंग है। सामाजिक सेवा कीर्ति बढ़ाती है। सेवा परमात्म तत्व, वरदान,
यज्ञ, तप और त्याग है। सेवा परमतत्व सिद्ध होती है। सेवा का वास तप के मूल
में है, अत: यह वरदान है। सेवाधर्म में स्वार्थ ईष्र्या के कारण विरोध आता
है। सेवा का भाव परिवार और मां की गोद से उपजता है। यह सबसे बड़ा संस्कार
होता है। सेवा करने की तत्परता महानता का लक्षण है दूसरों के लिए
नि:स्वार्थ भाव से किया गया कार्य सेवा है। सेवा का अर्थ है देने के अलावा न
लेने का संकल्प। सेवा व्रत सदाचरण का प्रतीक है। सेवा का श्रेष्ठतम रूप
माता-पिता, आचार्य और अतिथि की सेवा करना देवपूजा है। सेवा का संस्कार महान
बनाता है। सेवाव्रती तेजस्वी, कर्मनिष्ठ, उन्नत एवं विलक्षण करते हैं।
निष्काम सेवा जीवन को चमकाती है। मानवता की सेवा ईश्वर की पूजा है। सेवा
में ही जीवन है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि त्याग और सेवा भारत के दो
आदर्श हैं। इन दिशाओं में उसकी गति को तीव्र कीजिए शेष अपने आप ठीक हो
जायेगा। वही जीवित हैं, जो दूसरों की सेवा के लिए जीते हैं। समाज सेवा
विराट की सेवा है। सेवाधर्म की पावन मंदाकिनी सबका मंगल करती है। यह लोक
साधना का सहज संचरण है। माता-पिता की शुश्रुषा से बढ़कर कोई तप नहीं है।
सेवा मानवीय गुण है निष्काम सेवा का फल आनंद है।
जो व्यक्ति अपने माता-पिता की सेवा नहीं करते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। जैसा कि गुरु और भगवान का आशीष फलता है उसी प्रकार माता-पिता का आशीर्वाद भी फलता है।
यदि आप अपने बेटे को श्रवण कुमार बनाना चाहते हैं तो अपने पति को भी इसकी शिक्षा दें। श्रवण कुमार का बेटा ही श्रवण कुमार हो सकता है। उन्होंने चार प्रकार के पुत्रों के बारे में बताया- अतिजात-जो अपने कुल के गौरव को बढाता है, अनुजात-जो कुल के गौरव को स्थिर रखता है,अवजात-जो कुल के गौरव को घटाता है एवं कुलागां-जो कुल की कीर्ति को नष्ट करता है।
No comments:
Post a Comment